वो बेचारा

By on October 24, 2014, in Laghu Katha

‘‘आॅडर!आॅडर!’’ हाकिम के हथौड़ा ठोकते ही खचाखच भरी अदालत शांत हो जाती है। कटघरे में खड़े एक सौम्य-भद्र दिखने वाले सज्जन की पलकें तेजी से झपकने लगती हैं।

हाकिम ने गंभीर स्वर में पुछा, ‘‘ टेलीफोन भवन में इतनी बड़ी चोरी हुई और आप कह रहे हैं कि आप वहाँ गये ही नहीं थे?’’

‘‘जी हुजुर मेरे दोनों पैर गये होंगे।’’

‘‘यानि इस चोरी…’’

‘‘मेरे हाथें ने किया होगा हुजुर! मुझे कुछ भी मालुम नहीं।’’

‘‘इतनी बड़ी घटना घटी, आपने कुछ देखा-सुना नहीं?’’

‘‘शायद मेरी आँखों ने देखा होगा, कानों ने सुना होगा…। मैं मजबुर हूँ हुजुर!’’

‘‘इतना कुछ हुआ और आपको गंध भी नहीं मिली?’’

उसने असहाय स्वर में कहा,‘‘ हो सकता है मेरी नाक को मिली होगी!’’

हाकिम ने उब कर पुछा ‘‘ खदान चोरी के बारे में आप क्या अटर-बटर कहेगें?’’

‘‘ खदान चोरी!’’ वह आसमान से गिरा। ‘‘खदान की चोरी… वह फिर से आँखे मिचमिचाने लगा।

हाकिम ने झुंझला कर सरकारी वकील से पुछा,‘‘ यह किसे लाकर खड़ा कर दिया?’’

वकील ने आदरपूर्वक कहा,‘‘यह माथा है योर आॅनर। …पिटने के सिवा यह बेचारा और कर ही क्या सकता है!’’

कुमुद