…दुःख भरे दिन

By on October 24, 2014, in Best Picks, Laghu Katha

श्रृष्टि-स्थिति-विनाशक एक साथ मिल-बैठ गप्पेबाजी कर रहे थे।

शिव जी ने कहा,‘ मर्त्यलोक में मनुष्य जब खुश रहता है, तब हमें याद नहीं करता!

ब्रह्माजी बोले,‘ अकस्मात यह बात क्यों?’

‘आप ही देखिए ना। उस ट्रेन में बैठे यात्री कितने मस्त हैं। कोई भुल से भी हमें याद नहीं कर रहा। पर थोड़ी देर बाद, जब ट्रेन में बम होने की अफवाह फैलेगी-सब हमें ही पुकारने लगेंगे! विशेष कर मुझे!

शिवजी की यह बात, विष्णुजी को अच्छी न लगना स्वाभविक था,‘विशेष कर आपको ही क्यों? मेरे भक्तों की संख्या मर्त्यलोक में आपसे कोइ कम है क्या?’

शिवजी ने गंभीर स्वर में कहा,‘हाथ कंगन को आरसी क्या! देख लिजियेगा।’

ब्रह्माजी चुप थे। उन्हें मालुम था मर्त्यलोक में इन दिनों उम्रदारों का कोइ मोल नहीं है। चाहे वह मनुष्य हो या देवता। अतः उन्हें कोइ नहीं पुकारेगा।

शिवजी और विष्णुजी के तर्क सुनकर और बहुत सारे देव-देवियाँ जमा हो गये। दोनों पर सभी कुछ-कुछ नाराज दिखे। मर्त्यलोक में सभी की अपनी अपनी धाक है। कोइ भी किसी से कम नहीं। अतः हो-हल्ला होना ही था और होने भी लगा।

ब्रह्माजी ने सभी को शांत कराया, ‘आप सभी देख रहे हैं, ट्रेन में अफवाह फैलनी शुरू हो चुकी है। अब शांति बनाए रखें। मैं गिन देता हूँ, किसको कितने वोट…सॉरी! भक्तों की गुहार मिलती है…’

दुर्गाजी बोलीं,‘ गिनती इवीएम मशीन द्वारा…’

समय कम था। अतः सभी राजी हो गये। ट्रेन में अफरा-तफरी मच चुकी थी। सभी हाहाकार के संग अपने-अपने ईष्ट को पुकार रहे थे। हे बमदेव बाबा बचाओ, हे आत्माराम बापू हमें बचाइए, हे हिमांशु महाराज…, हे बिमला माता…,हे निजर्लबाबा…  बचाइए। देव-देवियों को हक्का-बक्का देख ब्रह्माजी मुस्कुराये! इवीएम मशीन बिल्कुल खाली थी।‘ आप सभी मर्त्यलोक में ओल्ड फैशन्ड हो गये हैं। अब नए मॉडल में बाबा, बापू, माता…. मर्त्यलोक में ही बहुतायात में मिल जाते हैं।’

कुमुद