हे भगवान!

By on October 24, 2014, in Laghu Katha

आज अनेक दिन बाद एक भक्त के पीछे-पीछे मन्दिर से निकल आए थे भगवान।

उन्हें उन दिनों की खुब याद आ रही थी जब उनके मन्दिर के दुवार पर ताले तो क्या कपाट ही नहीं हुआ करते थे। उन दिनों उन्हें जब इच्छा इधरे-उधर और भक्तों के घर-द्वार विचरण करने का मौका मिल जाया करता था।

फिर एक समय भारतीय क्रिकेट कप्तान दोे-चार बार क्या पधार गये, मन्दिर में तो मानो चार चांद लग गये। कतार में रईशों की भीड़ जितनी बढ़ती गयी रूपयेे-पैसे, सोनेे-चांदी के चढ़ावों से उतने लद गये भगवान। फिर तो मन्दिर में एक-एक कर लगे तीन दरवाजों पर आठ-दस बड़े-बड़े ताले झूलने लगे। और भगवान मानो बन्दी बन गये। उनके स्वच्छन्द विचरण पर रोक सी लग गयी।

आज सुबह मन्दिर के पट खुलते ही एक भक्त का रोना-गिड़गिड़ाना भगवान को कुछ ज्यादा ही विचलित कर रहा था। यूं तो वह ज्यादा कुछ नहीं मांग रहा था-‘ भगवान आज मालिक का मूड ठीक रखना। अगर एडवांस नहीं मिला तो पत्नी का आॅपरेशन रूक जाएगा।  वह मर जाएगी भगवान।’

उस भक्त के चले जाने के बाद शायद मन विसण्न हो गया था भगवान का। उन्हें लगा इस आदमी की मिन्नत को रखनी चाहिये।

पर जहां वह भक्त काम करता था वहां पहुंच कर भगवान को आभास हुआ कि उन्हें पहुंचने में थोड़ा बिलम्ब हो गया। मालिक का मूड पहले ही बिगड़ चुका था। वह चिल्लाचिल्ला कर कह रहा था,‘ कहां मैं एक शुभ काम में निकल रहा हूं, नई फेक्टरी की नींव रखने से पहले भगवान को चढ़ावा चढ़ाउंगा और कहां तू सुबह-सुबह अपनी मनहुस सूरत लेकर आ गया। अभी कल ही तो.. तेरी पत्नी मरे या बचे…मैंनें ठेका लेकर रखा है क्या?’

गुस्से से तमतमाते सेठ की गाड़ी निकल जाते देख भगवान कुछ चिंतामग्न हो गये। एक तरफ सुबह की आरती लेने के लिए मंदिर पहुंचने में बिलम्ब हो रहा था तो दुसरी तरफ अस्पताल जाकर उस दीन-दुखी की कुछ गती करनी थी। अन्त में उन्होंनें सोचा एक बार मन्दिर होकर ही अस्पताल चला जाउंगा।

अपने आसन में बैठे भगवान ने सुना, सेठ पुरोहित से कह रहा था,‘ ठीक से ताले-वाले लगाते हैं न पंडित जी! इस छोटे से मुकुट में तीन भरी सोना और छः किमती हीरे जड़े हैं। अब अच्छी तरह मन्त्र जाप कर मेरे प्रभु को पहना दीजिए।

उस किमती मुकुट को देख पंडितजी आज कुछ ज्यादा ही उत्साहित होकर और कुछ ज्यादा ही देर तक मन्त्रों का पाठ करने लगे। शायद कुछ गहरे चिंतन में खो गये थे भगवान। शाम तक के लिए मंदिर के पट कब बंद हो गये उनका ध्यान ही नहीं गया।

अकस्मात अस्पताल जाने का ख्याल आते ही उठ खड़े हुए भगवान। दरवाजों पर आठ-दस तालों की जगह और दो-तीन नये ताले जड़े देख वे विचलित हो उठे।

बरबस ही दो शब्द उनके मुंह से निकल आये, ‘हे भगवान।’

कुमुद