आकाओं ने काम किया

By on October 24, 2014, in Laghu Katha

अध्यक्ष महोदय माथा पकड़कर बैठे थे। पिछले दो दिनों से लोकसभा मानो अखाड़ा बना हुआ था। एक तरफ विपक्ष एफडीआइ के मुद्दे पर गलाफाड़कर चिल्लाते हुए काम रोको पर अड़ा हुआ था। वहीं सत्ता पक्ष एफडीआइ के पक्ष में बेंच पर चढ़कर विपक्ष की आवाज को दबाने के लिए और जोर से गला फाड़ रहा था। तंग आकर अध्यक्ष महोदय कुछ अति असभ्य आचरण करने वाले (असभ्यता आज के संसद की संस्कृति है) सांसदों को मार्शल द्वारा बाहर करवा चुके थे। कई मर्तबा सभा को स्थगित भी कर चुके थे। फिर भी हंगामा रूक ही नहीं रहा था।

अध्यक्ष महोदय को पिछले शीतकालीन सत्र की याद डरा रही थी, जिसमें तेइस दिनों के दौरान सिर्फ सात घंटे ही काम हुए थे। वे माथा थामे सोच रहे थे, इस सत्र के बाकी बचे दिन भी कहीं ऐसे ही बरबाद ना हो जाए! जबकि कितने महत्वपूर्ण कार्यों को निबटना बाकी है। और दानों पक्ष हैं कि बेतुके तर्कों में ही किमती समय को बरबाद करने में तुले हैं। खीजकर उन्होंनें मध्याह्न भोजन के उपरान्त प्रश्नकाल तक के लिये एक बार फिर से सभा को स्थगित कर दिया।

प्रश्नकाल में अध्यक्ष महोदय आश्चर्यचकित थे। एक सांसद द्वारा उठाए गये प्रश्न पर सभी पक्ष शांत तथा चिंतित दिखे। अतःपर, आजकल जनता द्वारा राजनितिज्ञों पर जूते-चप्पल फेंकने की नई प्रवृत्ति पर सभी पक्षों नें एकमत होकर निंदा प्रस्ताव को लाया और पारित भी किया। इस प्रवृत्ति पर रोक लगाने के लिए कठिन सजा के प्रावधान पर यथाशीघ्र चर्चा करने पर भी सहमत हो गये।

द्वितीय प्रश्न के मुद्दे पर भी सभी ने एकमत होकर अध्यक्ष महोदय से गुजारिश किया कि ‘‘संसद के केंटीन में भोजन की क्वालिटी को फाइवस्टार की जगह सेवनस्टार के स्तर की, की जाए।

अध्यक्ष महोदय यह सोचकर खुश थे, चलो आज की सभा के अंत में कुछ तो काम हुआ।

कुमुद