मैं

By on October 25, 2014, in Best Picks, Poem

तपती धूप में उनके पसीना बहाने से ही
मिट्टी काँपने लगेगी
घनघोर वर्षा माथे पे लिये
उनके हल पकड़ने से ही फसल फलेगी
दिगन्त में फैले पके धान की महक
मैं फेफड़ों में भर लूँगा  लबालब

उनके जागने से ही भोर होगी
उनके कुदाल-गैंती हाथ में लेने से ही
तालाब कटेगा –
मच्छलियाँ आबाद होंगी
मैं बंशी हाथ में ले कर
तालाब किनारे मुलायम घास पर बैठ कर
मछली पकड़ूँगा

बायलर की झुलसती ताप में
उनका पसीना झरने से ही
लोहा पिघल कर इस्पात बनेगा
उनके मशीन चलाने से ही
तैयार होगी मोटर गाड़ी
मैं स्टीयरिंग में बैठ कर, हार्न बजाऊँगा
उन्हें रास्ता छोड़, हट जाने बोलूँगा

उनके स्लोगन से ही
आन्दोलन की शुरूआत होगी
विद्रोह की आग में
उनके प्राण की आहुति विजय लायेगी
विजय उत्सव के दिन
मैं मंच पर बिछी कुर्सी पर जा कर बैठूँगा

बिभास सरकार