बुमरेंग

By on October 24, 2014, in Laghu Katha

लड़कों के बायोडाटाओं पर अंतिम नजर दौड़ाने के बाद गुप्ताजी ने कहा,‘‘भई, लड़के तो एक से बढ़कर एक हैं। सभी खानदानी रईस भी हैं।’’

खुश होने की बजाय पत्नी शकुन्तला हल्के से झुंझलाई।–छोड़ो जी, आपकी रईसी! बड़ी बेटी को भी तो खानदानी रईस के घर दिया है। देवरानी-जेठानी, ननंद-ननदोई के बीच पिसा रही है बेचारी। अपने जीवन का सुख भोगने की उसे फुर्सत ही कहाँ?

लम्बी साँस भरी गुप्ता जी ने।‘‘–इस बार वह गलती हरगिज नहीं करूंगा। इसीलिए तो इतनी माथापच्ची कर रहा हूँ। इनमें से दो लड़के मुझे पसंद हैं। एक के परिवार में केवल माता-पिता हैं। और एक की तो माता भी गुजर गयी हैं। केवल बूढ़े पिता ही हैं, वे भी और कितने दिन के! अकेले घर में राज करेगी मालती।’’

खुश हो जाती है पत्नी।‘‘-यहीं बात चलाओ जी! अब सास-ससुर ननद-देवर वाले परिवार में मैं किसी भी बेटी की शादी नहीं कराउँगी।’’

मालती भी खुश हुई। बगल में बैठी उसकी पीठ वाली बहन प्रमिला भी खुश हुई। पर शोख-चंचल, मुँहफट छुटकी सुजाता सिंगल सोफा पर पैर मोड़कर बैठी हौले-हौले मुस्करा रही थी। उसका इस मुद्रा में बैठना शकुन्तला को बिल्कुल भी पसन्द नहीं था। माँ को चिढ़ाने के मूड में रहने से ही इस मुद्रा में बैठती है वह।

अकस्मात ही छुटकी बोल पड़ी,‘‘ आपलोग मझली दीदी के बाद, बड़े भैया की शादी के बारे में सोच रहे हैं ना? अब तो भैया को अच्छी लड़की तो मिलने से रही!’’

शकुन्तला तुनक कर बोली,‘‘ क्यों नहीं मिलेगी! तुम्हारे भैया सुन्दर-शुशील तो हैं ही और हमारे पास पैसे की कोइ कमी है क्या?’’
छुटकी अब जोर से हँसी।‘‘–पर हमारे घर में चार-चार ननदें भी तो होंगी। साथ में सास-ससुर भी, वे भी इतने हट्टेकट्टे कि दस-बीस साल तो टस से मस नहीं होने वाले हैं।

गुप्ताजी ने छोटी बेटी की ओर गस्से से ताका। शकुन्तला तो तुनककर खड़ी ही हो गयी।‘‘–अरे प्रमिला, आंगन से झाड़ू उठाकर ला तो! मार इस कलमुँही के मुँह पर। कभी भी शुभ-शुभ नहीं बोलती छोरी।’’

क्रोध तले उन्होंने झेंप को ढाप तो लिया पर मन के अन्दर कचोटती कसक का क्या करते?

कुमुद