आखिरकार शर्माजी भी वी.आइ.पी. बने

By on October 24, 2014, in Best Picks, Laghu Katha

शर्माजी हड़बड़ाकर जा रहे थे। या यूँ कहिये, सीने में दर्द और कुछ ज्यादा ही पसीना आने की वजह से उन्हें हड़बड़ाकर ले जाया जा रहा था।

महात्मागांधी चैक पहुँचते-पहुँचते शर्माजी हिंचकियाँ लेने लगे। पीछे की सीट पर शर्माजी को थामे हुए उनकी पत्नी जोर-जोर से रोने लगी।

ऑटो को खड़ा देख बेटे ने उद्वीग्न होकर पुछा,‘‘ क्या हुआ भई? सिगनल तो ग्रीन है।’’

चालक ने झुंझलाते हुए कहा,‘‘ट्रैफिक वाले ने रोक रखा है। सायरन नहीं सुन रहें हैं? मुख्यमन्त्री का काफिला आ रहा है। आज सीताराम बापू आये हैं न! उन्हें लाने मुख्यमन्त्री स्वयं एयरपोर्ट गये थे। बापू के बहुत बड़े भक्त जो ठहरे।’’

पत्नी रोते हुए चिल्लाई,‘‘ इस बापू मुआ को भी अभी ही आना था।’’

इस परेशानी में भी बेटे के होठों पर मुस्कान आ ही गई। आज सुबह तक भी उनके आज ही दर्शन के लिये माँ आतुर थी। भक्तिभाव से गद्गद्।

मुख्यमन्त्री का काफिले आज कुछ ज्यादा ही लम्बा था। शायद बापू के धनवान भक्तों की गाडि़याँ भी काफिले में शामिल थी। काफिला के गुजरने के बाद चैराहे के चारो तरफ बुरी तरह जाम लग गया।

आज पुनः जा रहे थे शर्माजी। या यूँ कहिये, उन्हें ले जाया जा रहा था। शायद कल की अधुरी यात्रा पुरी करने। आज चैराहे पर उन्हें रोका नहीं गया। रेड सिगनल होते हुए भी ट्रैफिक दारोगाजी सब को रोक कर उन्हें ही झटपट पार कराने लगे। शर्माजी पहले तो थोड़ा आश्चर्यचकित हुए, फिर गुस्से से चिल्ला-चिल्लाकर भद्दी-भद्दी गालियां देने लगे। दारोगाजी में कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखी। बल्कि उन्होंने सर झुकाकर शर्माजी को नमन किया।

अंत में शर्माजी ने खिसियाकर कहा,‘‘ इसी तरह कल हड़बड़ाकर मुझे चैराहा पार करा देते तो आज मुझे बेवक्त, बेमतलब चार कंधों पर सवार तो नहीं होना पड़ता ना?’’

कुमुद