मेरा समाज सेवी चिंतन

By on October 25, 2014, in Poem

मैंनें सोचा बियालिस बसंत का
आनंद तो मैं ले ही चूकी हूँ
क्यों न बाँट दूँ एक बसंत
उन झोपड़-पट्टियों में
जहाँ बसंत आता ही नहीं

मैंने रंग बाँटा , उमंग बाँटा
मन की हर तरंग बाँटा
सब डकार कर साले भुख्खड़ों ने
फिर मुझसे भात मांगा

                                                  कुमुद