दायबद्ध
By Salaam India on October 24, 2014, in Laghu Kathaस्कुल से निकलकर वह पिता के कर्मस्थल ‘अग्रवाल गारमेन्ट्स’ के लिए चल देती है। थोड़ी सी चिंतित और थोड़ी सी परेशान। बारहवीं परीक्षा का फार्म भरने की कल अन्तिम तिथि है। यह बात वह पिता को एक बार फिर याद दिला देना चाहती है।
शांत प्रकृति की यह लड़की बहुत ही शालीन है। उसकी खुबसुरती में अद्भुत लावण्यता है। उसका ध्यान अपने वक्षस्थल के उभारों से ज्यादा, ट्रीग्नोमेट्री के फार्मूले या केमिस्ट्री के मोलेक्युल्स पर रहता है। पढ़ाई में लीन रहना ही शायद उसका एक मात्र शौक है।
दुकान के पास पहुँच कर अकस्मात स्तंभित खड़ी रह जाती है वह। अग्रवाल जी उसके पिता को बुरी तरह फटकार रहे थे। “अपनी पगार के अनुसार जीना क्यों नहीं सीखते? भिखमंगे की तरह हर माह एडवांस मांगते हो? तुम्हें शर्म नहीं आती? लड़की को पढ़ा लिखा कर क्या कर लोगे? डॉक्टर- इंजिनियर बना लोगे क्या?”
तीव्र ग्लानि से उसकी आँखे छलछला जाती है। पर निदारूण अभिमान सारे आसूँओं को सोख लेता है। वह उल्टे पैर लौट आती है। निश्चय करती है कि और आगे नहीं पढ़ेगी।
शाम को भाई- बहन को पढ़ते देख वह उदास हो उठती है। पापा आते ही माँ को खुशखबरी सुनाते हैं।” मैंने कहा था ना, पैसों का इन्तजाम हो जाएगा। बेकार में ही परेशान हो रही थी तुम! फीस के लिए एडवांस मांगते ही मालिक ने ख़ुशी-ख़ुशी दे दिया।”चीढ़ जाती है माँ। ” दिया है तो, पगार से हर महीने काट भी तो लेंगे! पहले ही दाल-रोटी मुश्किल से मिलती है! अब भूखे ही रहना। क्या करोगे बेटी को पढ़ा कर? पढ़-लिख लेगी तो दहेज नहीं देना पड़ेगा क्या?”
पिता बुझे स्वर से कहते हैं, ” क्यों इस तरह बोलती हो? हमें थोड़ा-बहुत कष्ट ही तो झेलना पड़ेगा! तुम नहीं जानती वह कितनी होनहार है! देखना एक दिन इस बेटी पर, तुम ही गर्व करोगी!”
दरवाजे की ओट पर खड़ी, खुद को रोक नहीं पाती है वह। उसकी आँखों से झरझर आँसू टपकने लगते हैं।
घसीटते हुए वक्त गुजरता जाता है। आज सारा शहर गौरान्वित है। स्थानीय हर समाचार पत्रों के पहले पृष्ठ में उसकी तस्वीर के साथ प्रशंसा के शब्द भरे हुए हैं। मोहल्ले के लोंगों का तांता सा लगा हुआ है उसके घर पर, सभी बधाई दे रहे हैं। भाई-बहन बहुत खुश हैं। माँ कभी हँसती है तो कभी ख़ुशी के आवेग को रोक नहीं पाती है। आँखें छलछला उठती है। उनकी बेटी ने सिविल सर्विस की परीक्षा में पूरे देश में प्रथम स्थान पाया है।
वह भी खुश है। पर पिता के प्रति तीव्र अभिमान से उसकी आँखे बार-बार भर आती है।
पापा भी शायद खुश हैं। दीवार पर टंगी उनकी तस्वीर पर आज सुबह ही ताजा फूलों की माला चढ़ाई गई है।
वे भी मुस्कुरा रहे हैं।
कुमुद