भूख
By Salaam India on October 24, 2014, in Best Picks, Laghu Kathaदोपहर को झपकी लेने की कोमल की आदत सी है। ऐसे वक्त घर में किसी का आना उसे नागवार लगता है। आज भी विरक्ति के भाव लिए वह दरवाजा खोलती है। मलिन सा चेहरा लिये एक वृद्धा खड़ी थी। -बेटी कुछ खाने को दो न!
कोमल की झुंझलाहट गुस्से में बदल जाती है। -यह भी कोई वक्त है मांगने का?
-भूख को वक्त का अहसास कहाँ! दो दिन पानी पीकर ही गुजारा है। सोचा था पानी से ही भूख मिट जाएगी! पर अब बर्दाश्त नहीं होता!
थाली हाथ में लेते ही वह बेतहाशा खाने लगती है। विस्मय भरी नजरों से कोमल उसे खाते देखती है। चेहरे या वेशभूषा से वह भिखारन बिल्कुल नहीं लगती!
खाना खत्म होते ही, अकस्मात वृद्धा सुबकने लगती है।
आश्चर्यचकित कोमल पूछती है, -क्या हुआ? और लेंगी क्या?
इंकार में सर हिलाती है वह।
-फिर क्यों रो रही हैं?
दीर्घसाँस लेती है वह। -परिस्थिति ने मुझे ये दिन भी दिखलाया! देखो ना! कुछ देर पहले जो स्वाभिमान बलशाली भूख के आगे कहीं दुबक गया था। भूख के जाते ही, उसने मुझे रूला दिया।
कुमुद