किससे लड़ेगी शिवानी ?

By on October 24, 2014, in Best Picks, Laghu Katha

शुगर लेवल क्या बढ़ गया, मानो आफत आ गयी। डॉक्टर के कहने पर मॉर्निंगवाक् करना पड़ रहा है शिवानी को। वरना ठंड के मौसम में नींद खुलने के बाद भी, रजाई में दुबके रहने के आनन्द से कतइ वंचित नहीं होना चाहती वह।

आज तो ठंड कुछ ज्यादा ही है।शिवानी के आगे-आगे कोट टोपी पहने हुए भी ठिठुरता हुआ, एक बच्चा माँ के साथ बस स्टॉप की ओर जा रहा था। पीठ पर लदे स्कुलबैग के भार से शायद, वह ठीक से चल भी नहीं पा रहा था। उसकी माँ का झुंझलाहट से भरा स्वर सुन पा रही थी शिवानी।

‘‘ तेज चलो वरना स्कुलबस छुट जाएगी, ला बैग मुझे दे दे।’’ बैग माँ को देने के बाद लगा बच्चे को राहत मिली।

माँ ने बच्चे से पुछा–‘‘आज बैग तो बहुत भारी है! क्या डाल लिया तुमने?’’

‘‘–क्या डालूंगा मम्मी! हर पिरीयड के लिये अलग-अलग किताब-कॉपी ही है।’’

बच्चे के स्वर में लाचारी का भाव था। जो कि शिवानी को बेचैन करने लगा। क्या हो गया है आजकल के स्कुलों को! छः सात वर्ष के बच्चे के कंधों पर इतनी किताबों का बोझ डाल देता है। तभी उसे याद आता है, आज ही क्यों, आज से बीस साल पहले जब उसके दोनों बच्चे भी छोटे-छोटे थे, वे भी तो भारी बैग ढोते थे। पर इसके लिये शिवानी ने स्कुल मेनेजमेंट से लम्बी लड़ाई लड़ी थी। फिर तो धीरे-धीरे बहुत सारे अभिवावक भी उसके साथ हो गये थे।अंत में स्कुल मेनेजमेंट को कई नियमों को बदलने पड़े। पढ़ाई का समय घटाकर बच्चों के खेलने कुदने का तथा अन्य एक्टिविटीज के लिये समय बढ़ा दिया गया था।

शिवानी ने तेज कदम से बच्चे के पास पहुँचकर, उसके सर पर हाथ फेरा,-‘‘किस स्कुल में पढ़ते हो बेटे?’’

बच्चे से पहले ही उसकी माँ ने गर्व से कहा,‘‘ मरीना कान्वेंट में। बहुत नामी स्कुल है। हाँ, थोड़ा खर्चीला जरूर है।’’

चलते चलते शिवानी सोचती है, आज टेलिफोन डायरेक्ट्री से नम्बर खोज कर मरीना कान्वेंट के प्रिंसिपल से जोरदार प्रोटेस्ट करेगी। जरूरत पड़े तो समाचार पत्र में भी लिखेगी। तभी उसकी नजर सड़क के किनारे पड़े कचरे के ढेर की ओर पड़ी। मैली-कुचली फ्रॉक पहने, एक चार-पाँच साल की बच्ची बोरे में रद्दी पोलिथन और कागज ठूंस-ठूंसकर भर रही थी। बोरा भर जाने के बाद पीठ में लादकर चलने को तो हुई, पर बोरा कद में, उससे उँचा हो जाने के कारण मिट्टी में घिसटने लगा। उसने रूककर कुछ पल सोचा, फिर बोरे को पीठ पर लादकर पीठ को कुछ ज्यादा ही झुका लिया। फिर सिर को घुमा कर पीछे की ओर देखा। बोरे को मिट्टी से उपर उठा देख वह खुश नजर आयी और उसी तरह पीठ झुकाकर चलने भी लगी।

पर स्तंभित खड़ी रह गयी शिवानी। उस स्कुली बच्चे की पीठ पर लदे बोझ के लिए तो प्रिंसिपल से लड़ लेगी पर यह समझ नहीं पा रही थी, इस बच्ची की पीठ पर लदे बोझ के लिए किससे लड़ेगी!

कुमुद