समोसे की अभिलाषा

By on October 24, 2014, in Laghu Katha

एक बड़े से कड़ाही में समोसे तले जा रहे थे। उनमें से एक समोसा अपने रंग-रूप में निखार आने से बहुत खुश था। वह उबलते तेल में से फुदक-फुदक कर इधर उधर देख रहा था। प्लेट परोसने वाले लड़के को र्इश्वर मान कर, उसने मन ही मन प्रार्थना की, हे र्इश्वर मुझे उस कोने में बैठे प्रेमी-प्रेमिका के प्लेट में मत परोसना। प्रेमिका के प्लेट में तो हरगिज ही नहीं। वह प्रमी के सामने नाक सिकोड़ कर नखरे दिखाएगी, ”मैं नहीं खाऊँगी, तेल की बदबू है।

प्रेमी शान दिखाएगा,”नहीं खाना है तो छोड़ दो। कुरकुरे मंगवा दूँ? कोल्ड ड्रींक लोगी?…

और वह जो सामने टेबल पर बैठा मोटू, धन्ना सेठ का बेटा-उसकी प्लेट में भी, मुझे कतर्इ मत डालना। कब से राक्षसी नजरों से हमें ही देख रहा है। डाक्टर ने उसे ज्यादा खाने को मना किया है। संयम बरत रहा है बेचारा मोटू। फिर भी चार-पाँच तो अवश्य खाएगा। खाएगा नहीं, मुँह में ठूंसेगा। डकार कर ढकार लेगा। और फिर से क्या खाया जाए यह सोचने लगेगा।

दुकान के बाहर जो दिहाड़ी मजदूर खड़ा है, जो कि अब तक दो तीन बार हमारी कीमत पुछ चुका है। वह भुखा है। उस में लालच भी है। पर पाँच रूपए एक समोसे पर खर्च करना उसे खल रहा है। फिर भी वह आएगा। भुख और लालच से हार कर ही आएगा। देखेगा-परखेगा। तब एक खरीदेगा। भले ही इस खर्च की भरपाइ करने के लिए बस के बदले उसे छ: मील पैदल चल कर घर लौटना पड़े।

र्इश्वर, तुम मुझे ही उसे खाने को देना। दोने में मुझे लेकर वह उस पीपल पेड़ के नीचे चला जाएगा। मेरे रंग-रूप को निहारेगा। सुगंध लेगा। फिर प्यार से थोड़ा-थोड़ा तोड़ कर मुंह में डालेगा। मेरे स्वाद से विह्वल होगा। मुझे खाकर उसका पेट भले ही ना भरे, मन अवश्य ही परितृप्त होगा। सामने चाँपाकल होते हुए भी, पानी पीकर मेरे स्वाद के अहसास को वह खोना नहीं चाहेगा। वह मुझे याद रखेगा।

र्इश्वर तुम समझ रहे हो ना, मैं अपने पल भर के जीवन को सार्थक करना चाहता हूँ।

 कुमुद