गीता कलयुगी

By on October 25, 2014, in Poem

(1)

अस्त्र भेष बदलता है
तलवार बन जाती है मिसाइल

अश्वमेधी अहंकार लिये
काले घोड़े पर सवार
रत्नाकर सूट पहन कर
बाल्मीकि बनने का ढोंग करता है

तुम गर्दन झुका लो, या कटा लो
तुम्हारी मृत्यु ही अभिसंधि है

(2)

भय में क्यों शांति तलाशते हो
मृत्यु ही सत्य है
युद्ध को गले लगाओ
युद्ध को प्यार करो

बाबर,सिकन्दर चिरंतन नहीं
हिटलर आत्महन्ता है

अहंकार कालजयी नहीं
विनाश ही सृष्टि का उत्स
एक भयावह युद्ध के बाद
शांति अवश्यंभावी है

कुमुद