भूख

By on October 25, 2014, in Best Picks, Poem

आज के कवि सम्मेलन में
एक नयापन था
कविता पाठ से पहले
हर कवि को
कविता के विषय पर
व्याख्यान देना था

किसी ने नस्लवाद, तो किसी ने
ग्लोबल वार्मिंग पर-
किसी ने पूंजीवाद, तो किसी ने
समलैंगिकता पर व्याख्यान दिया
और कविता पढ़ी

मेरी बारी आते ही
मैं ‘नर्वस’ हो गयी
सभी मेरी ओर उत्सुकता से देख रहे थे
मैंनें संकुचित स्वर में बोला-
मेरा आज का विषय है,- ‘भूख’
सारी उत्सुकता पर मानो
बारिश हो गयी
किसी ने लम्बी साँस ली
तो किसी ने अरूचिवाचक आह भरी!
हमारे गोष्ठी पत्रिका के संपादक-
उम्रदार शशिमोहन जी… ‘जिन्हें किसी को
डाँटने तक का अधिकार प्राप्त था’…ने
कहा- ”क्या घिसे-पिटे विषय पर
हमेशा लिखती हो!
कुछ नया सब्जेक्ट क्यों नहीं लेतीं?”

आक्रमण के लिए
और भी कविजन प्रस्तुत थे
बीच बचाव में आयी
‘होस्ट’ सुमित्रा दीदी-
”क्यों न कुमुद की कविता से पहले
चाय नाश्ता हो जाए!”
सभी खुश हो गये
कवि रहमान जी ने कहा-
”अल्लाह मेहरबान
बंदा ना सुने
भुखे पेट
भूख का गान”

चाय नाश्ता से फारिग हो जाने पर
फिर से मेरी बारी आर्इ
समोसे के संग ‘नर्वसनेस’ को
मैं डकार चुकी थी

सोमालिया के अकाल में
भूख से मृतप्राय,
एक बच्चे के सामने
अपेक्षी गिद्ध की, उस बहुचर्चित विडियोग्राफी पर
मैंने एक मार्मिक कविता लिखी थी
शायद मेरे अंत:अभिमान को भाप कर
वह कविता, डायरी समेत झोले में कहीं छुप गयी
कविता पाठ से छुटकारा पाने के लिए
मैंने तत्क्षण दो पंक्तियाँ बना डालीं
मुस्कुरा कर सबकी ओर देखा
और तपाक से पढ़ डाला-
“भूखे पेट भूख अभिमानी
भरा पेट भूख बेमानी”

कुमुद