सच

By on October 24, 2014, in Laghu Katha

ट्रेन के इन्तजार में बैठे-बैठे झपकी आ गयी थी, श्यामलालजी को। इस झपकी के इन्तजार में बगल में बैठा व्यक्ति अपना काम तमाम कर चलता बना। बेचारे सीधे-सादे गाँव के प्राइमरी स्कूल के शिक्षक पर उसे सहानुभूति तो आयी, पर वह अपने धर्म से मजबूर था। ट्रेन की आवाज और कोलाहल से श्यामलालजी की तन्द्रा टूटी। वे हड़बड़ाकर दूसरे दर्जे के डिब्बे में सवार हो गये। बैठने की जगह पाकर खुश भी हुए। पर अकस्मात् कुर्ते के जेब का हल्कापन ने उन्हें चैंका दिया। रूपया-पैसा के साथ साथ ट्रेन-टिकट भी गायब था। बेचारे श्यामलालजी परेशान हो उठे।

दुर्भाग्यवशतः अगले स्टेशन पर ही मेजिस्ट्रेट चेकिंग थी। वे पकड़े गये। उनके साथ सूट-बूट पहने हुए और एक सज्जन भी बेटिकट पकड़े गये। श्यामलालजी ने सोचा शायद उनके साथ भी कोई दुर्घटना घटी होगी। मेजिस्ट्रेट साहब ने पहले सूट-बूट परिहित व्यक्ति से पूछा, ‘‘वेश-भूषा से तो सज्जन दिखते हैं। बेटिकट यात्रा करने में शर्म नहीं आती!’’
व्यक्ति ने हाथ जोड़कर कहा, ‘‘हुजूर सच कहूँ या झूठ।’’

‘‘-अवश्य ही सच कहिये।’’

‘‘-एम. पी, एम. एल. ए, मन्त्री, अफसर सभी तो बेटिकट घूमते हैं। वह भी ए.सी में। शायद आप भी घूमते होंगे? हाकिम जो ठहरे! यह देश मेरा भी है। सेकेन्ड क्लास में ही सही, मैं हमेशा ही बिना टिकट यात्रा करता हूँ। कभी कभार काले कोट वाले के पकड़ने पर बीस-पचास देकर सलटा लेता हूँ। इतने वर्षों में आज पहली बार मेजिस्ट्रेट चेकिंग में पकड़ाया हूँ।’’

इतना सपाट सच सुनकर हाकिम मुस्कुराये। ‘‘-आपका सच बोलना हमें अच्छा लगा। इस कारण जुर्माना माफ कर रहा हूँ। भाड़ा जमाकर आप जा सकते हैं।’’

हाकिम श्यामलालजी से मुखातिब हुए। ‘‘-हाँ तो आप बताइये बिना टिकट क्यों यात्रा कर रहे थे?’’

श्यामलालजी ने हाथ जोड़कर सारी आपबीती बयान कर दी।

मेजिस्ट्रेट साहब बहुत नाराज दिखे। -आपने अभी-अभी सच को पुरस्कृत होते हुए देखा। क्या सीखा? इस उम्र में झूठ बोलते आपको शर्म नहीं आती? हजार रूपये तुरन्त दण्ड भरिये। अन्यथा पन्द्रह दिनों के लिए जेल की हवा खाइये।

नतमस्तक खड़े बेचारे श्यामलालजी को सच को बयान करने की, और कोई कला कहाँ मालूम थी!

कुमुद