आ बैल मुझे मार

By on October 24, 2014, in Laghu Katha

आज वह नहीं आएगी क्या? इस सोच मात्र से ही स्मिता के हाथ पैर शिथिल होने लगते हैं। धप् से सोफे पर बैठ जाती है वह।

मीनू को स्कूल भेजने से लेकर संजय के ऑफिस के लिए निकलने तक तो, उसने किसी तरह काम संभाल लिया। अब बिखरे पड़े घर को देखकर मानो उसका दम घुटने लगा।

तब ही कॉलबेल की आवाज सुन फुर्ती से उठकर दरवाजा खोली वह। चेहरे पे अजीब सी थकान लिये फुलमनी ही खड़ी थी।

“इतनी देर लगा दी?” ना चाहते हुए भी स्मिता के स्वर में झुंझलाहट झलक ही जाती है।

फुलमनी रूआँसी सी होकर बोलती है। “कल रात अचानक छोटीवाली बेटी के पेट में दर्द होने लगा था। सुबह सदर अस्पताल में दिखलाकर, सीधे यहीं आ रही हूँ।”

स्मिता निश्चिन्त होकर अखबार पढ़ने लगी। फुलमनी इतनी समझदार और कर्मठ है कि उसे कोई काम बताना ही नहीं पड़ता। हर काम वह सलीके से कर लेती है।

फुलमनी को सामने खड़ी देख स्मिता पूछती है, “अब क्या हुआ?”

फुलमनी संकोचित स्वर में कहती है, “मुझे दो सौ रूपये एडवांस चाहिये। बच्ची के लिए दवा खरीदनी है।”

“तुम जल्दी काम खत्म करो, जाते वक्त ले लेना।”

फुलमनी के जाते ही सोच में पड़ जाती है स्मिता। संजय थोड़ा बहुत अपने पास रखकर बाकी की पूरी तनख्वाह उसके हाथ में दे देता है। फिर भी आज के महंगाई के दौर में कहाँ ज्यादा बचत कर पाती है वह!

कभी कभी फुलमनी के बारे में सोचकर हैरान हो जाती है स्मिता। पाँच बच्चों की माँ यह विधवा कैसे घर चलाती होगी! दो घर में काम करके उसे कितनी पगार मिल जाती है! कई बार उसके मन में आता है फुलमनी से पूछे पर पूछ नहीं पाती! कहीं वह यह ना कह दे,”कहाँ चलता है दीदी!” भरपेट खाना ही तो नहीं जुटता! अगर थोड़ी सी पगार बढ़ा देतीं तो …!’’

बहु प्रचलित उस मुहावरे को स्मिता खुद पर क्योंकर लागू होने देगी! इतनी भी तो बेवकूफ नहीं है वह!

कुमुद