जय हो अन्ना

By on October 24, 2014, in Laghu Katha

शर्माजी पूजा में बैठे थे। उनके घर के बाहर लॉन में बिछी कुर्सी पर बैठ मैं घन्टे भर से इंतजार कर रहा था।

शर्माजी को आते देख मैंने तुरन्त खड़े होकर सम्मानपूर्वक अभिवादन किया। ‘‘-वेरी वेरी गुड मार्निंग सर।’’

शर्माजी ने जोशीले स्वर में जवाब दिया, ‘‘जय भारत! अरे भई! कम से कम आज तो भारत माता की जय बोलिये। आपको मालूम ही होगा अन्नाजी आज से भूख हड़ताल पर हैं। आज मैंने उनके स्वास्थ्य के लिए भगवान से स्पेशल प्रार्थना की है। उन्हें बहुत ही श्रद्धा-भक्ति करता हूँ मैं।’’

मैं सकपका गया। मुझे लगा मेरी नैया किनारे लगते-लगते डूबने लगी।

मैं रजिस्ट्री ऑफिस के जिस टेबल में क्लर्क हूँ, वहाँ प्रतिदिन कुछ न कुछ ऊपर से आ ही जाता है। तभी तो मैंने हिम्मत करके दोनों बेटों को इंजिनियरिंग कॉलेज में दाखिला दिला दिया। नहीं तो तनख्वाह से होता ही क्या? अभी भी तो दिल्ली दूर ही है-और मुझे पता चला है, मेरा तबादला उस शंटिंग टेबल पे हो चुका है जहाँ मक्खी तक झाड़ा फेरने नहीं आती। सहकर्मी गिरिराजजी ने मुझे परेशान देख सलाह दिया, ‘‘सेक्रेटेरिएट में शर्माजी बड़े बाबू हैं। उन्हें पचीस-पचास देकर खुश कर दीजिए। उसी में वे सेक्रेटरी को भी संभाल लेंगे। आपका तबादला रूक जाएगा। कहिए तो मैं बात बढ़ा दूँ।’’

मैं तुरन्त तैयार हो गया था। बात साठ हजार में तय भी हो गयी थी। फिर ये अन्नाजी कहाँ से पधार गये मेरी तैरती नैया को डूबाने।

मैंने हिचकिचाते हुए शर्माजी से कहा, ‘‘सर मैं बृजलाल हूँ… गिरिराजजी शायद …’’

वे मुस्कुराये, ‘‘जितना लाने को कहा था, लाये हो ना?’’

मैंने तुरन्त जेब से लिफाफा निकालकर उनके हाथ में थमा दिया। और हिम्मत बाँधकर कहा, ‘‘मैं तो डर ही गया था सर। कहीं आप अन्नाजी के प्रभाव में तो नहीं आ गये!’’

उन्होंने मुस्कुराते हुए लिफाफे को पॉकेट में डाल लिया। और कहा, “आप झूठे, मक्कार, चोर, और घूसखोर भी हैं। हैं ना?”

मैंने हड़बड़ाकर हामी में सिर हिला दिया।’’

“-फिर भी तो आप भगवान को श्रद्धा-भक्ति करते ही हैं। पूजते भी होंगे ही? आप बुरा देखते हैं -बुरा कहते हैं- बुरा सुनते भी हैं। इसका यह मतलब तो नहीं कि आप गांधीजी को श्रद्धा नहीं करते! अन्नाजी बहुत महान काम कर रहे हैं। उनको श्रद्धा करना हमारा धर्म है। पर कर्म तो अपनी जगह में ही रहेगा ना?”

मैंने गदगद होकर नारा लगाया, जय भारत! जय अन्ना!

कुमुद