मैं बुद्धिजीवी

By on October 24, 2014, in Best Picks, Laghu Katha

सुबह, चाय की चुस्कि के साथ मैंने अखबार के पहले पन्ने पर नजर दौड़ाई। उपर में ही जंगली हाथियों के झुंड की तस्वीर छपी थी। हेडलाइन थी, हाथियों के झुंड ने गांव में उत्पात मचाया-दो ग्रामिणों की मौत। मैंनें सरसरी नजर से खबर को पढ़ डाला। अन्त में बनमन्त्री का स्टेटमेन्ट था-‘‘माफिया द्वारा जंगल को अंधाधुंध काटे जाने के कारण, हाथियों को जंगल में पर्याप्त खुराक नहीं मिल रही। जिस वजह से वे आसपास के गांवों में धावा बोल रहे हैं। गांव वालों से मेरी विनती है, वे हाथियों को क्षति ना पहुचाएँ, बल्कि डरा कर जंगल में वापस भेजने का प्रयास करें। सरकार की ओर से पुरी कोशिश जारी है कि हाथियों को पर्याप्त भोजन जंगल में ही उपलब्ध हो जाय।’’
इस खबर के दाईं ओर दुसरी खबर छपी थी। हेडलाइन थी, ‘पुलिस को मिली बड़ी सफलता! विस्तृत खबर छपी थी- झांकी गाँव में पुलिस मुठभेड़ में चार उग्रवादी ढेर। पुलिस का कहना है, चारो हार्डकोर थे। पर गाँव वालों के अनुसार चारों युवक उसी गाँव के रहने वाले थे। गरीबी से तंग आकर, अन्य अनेक युवकों की तरह पिछले साल वे भी उग्रवादियों के संग मिल गये थे।
दोनों खबरों में कुछ समानता और कुछ विषमता थी। अतः चाय की चुस्की के संग मैं चिंतन करने लगी, आखिरकार बुद्धिजीवी जो ठहरी। गहन चिंतन के अंत में मैं इस निष्कर्ष पर पहुँची – गलती अखबार के संपादक की है। इन दोनों खबरों को आसपास छापना ही नहीं चाहिये था।

 कुमुद