मैं कारावास में

By on October 25, 2014, in Poem

उनकी निजी अदालत के
कटघरे में खड़ा मैं
साक्षी-सबूत सब निरंकुश कह गए
दिन-यापन की इतिकथा
मैं जन्मजात मुजरिम

अभिमानी हृदय में जमाट यंत्रणाएँ
हाथ-पैर पसारने को मिट्टी नहीं, शून्य उदर
लज्जा ढाँपता नहीं वस्त्र
लज्जा बुलाता है
कौन छीन लेता है भूख का अन्न?
क्यों छीन लेता है आश्रय की मिट्टी?

मैं भिखारी नहीं, भृत्य नहीं
फिर भी उनकी खिदमत में जीना
जीवन-यापन

मैं योद्धा नहीं, विद्रोही नहीं
फिर भी आजन्म लड़ार्इ
उनकी अदालत में यावत-जीवन कारावास

बिभास सरकार