रविवार का हाट

By on October 25, 2014, in Poem

बाद में संवाद देंगे
यह संवाद दे कर
चले जाते हैं वे लोग
भद्रता के वेश में
मनुष्य के मुखौटाधारी
मानुष

जले हुए तेल के समोसे से
उठती खट्टी ढकार
श्रीहीन नैन-नक्श की लड़की
है भी तो काली
घर की हालत देख लगता नहीं
दहेज-वहेज कुछ खास…

टूटा-फूटा अभिमान
धुल जाता है हैन्डपंप के पानी में
परत-दर-परत नेपथेलिन की गन्ध लिए
फिर से सज जाती है,
साड़ी ब्लाउज,पुतियों की माला
टीन के सन्दूक में

रॉकेट चढ़ उड़ जाता है
सभ्यता का सेटेलाइट
धुआँ और राख चेहरे पे लेप
फिर से सजानी है दुकानपाट
रविवार की हाट में

बिभास सरकार