समोसे की अभिलाषा
एक बड़े से कड़ाही में समोसे तले जा रहे थे। उनमें से एक समोसा अपने रंग-रूप में निखार आने से बहुत खुश था। वह उबलते
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एक बड़े से कड़ाही में समोसे तले जा रहे थे। उनमें से एक समोसा अपने रंग-रूप में निखार आने से बहुत खुश था। वह उबलते
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भगवान दुःखी थे। अतः कुछ दिनों से कामकाज में उनका मन नहीं था। और भक्तों के आवेदन की फाइलों का पहाड़ ऊँचा होता जा रहा था।
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सुरज का पढ़ना लिखना शुरू में पसंद नहीं था लगनु को। इस बस्ती में पढ़ने लिखने का चलन कभी से भी नही है। बच्चे थोड़ा बड़े
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भारी मन लिये कालेज के लिए तैयार हो रही थी स्वाति। आज सुबह अखबार की मर्मस्पर्षी खबर से मन विचलित हो उठा था। तीन लोगों
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सारा दिन एक मंदिर के बाहर बैठ भीख मांगता था मंगतू। और कभी बुदबुदा कर तो कभी मन ही मन गाली देता रहता था,‘‘ साले
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मैं लिखने के टेबल के पास बैठा जरूर था, पर कविता दो पंक्ति से आगे खिसक ही नहीं रही थी। शायद ड्राइंगरूम से आती एक
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शुगर लेवल क्या बढ़ गया, मानो आफत आ गयी। डॉक्टर के कहने पर मॉर्निंगवाक् करना पड़ रहा है शिवानी को। वरना ठंड के मौसम में नींद
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सुबह, चाय की चुस्कि के साथ मैंने अखबार के पहले पन्ने पर नजर दौड़ाई। उपर में ही जंगली हाथियों के झुंड की तस्वीर छपी थी।
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स्कुल से निकलकर वह पिता के कर्मस्थल ‘अग्रवाल गारमेन्ट्स’ के लिए चल देती है। थोड़ी सी चिंतित और थोड़ी सी परेशान। बारहवीं परीक्षा का फार्म
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आज वह नहीं आएगी क्या? इस सोच मात्र से ही स्मिता के हाथ पैर शिथिल होने लगते हैं। धप् से सोफे पर बैठ जाती है
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श्रृष्टि-स्थिति-विनाशक एक साथ मिल-बैठ गप्पेबाजी कर रहे थे। शिव जी ने कहा,‘ मर्त्यलोक में मनुष्य जब खुश रहता है, तब हमें याद नहीं करता! ब्रह्माजी बोले,‘
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कयामत कैसे आयी, कैसे गुजरी, किसी को पता नहीं था। एक जगह एक मनुष्य, एक कुत्ता, एक गाय, एक कौआ और एक साँप जीवित बचे
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शर्माजी हड़बड़ाकर जा रहे थे। या यूँ कहिये, सीने में दर्द और कुछ ज्यादा ही पसीना आने की वजह से उन्हें हड़बड़ाकर ले जाया जा
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नर और मादा गिद्ध तथा उनका बच्चा, तीनों ही तीन मनुष्यों की लाश पर बैठ मांस खाने में मस्त थे। अकस्मात नर गिद्ध इधर-उधर पड़े
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दोपहर को झपकी लेने की कोमल की आदत सी है। ऐसे वक्त घर में किसी का आना उसे नागवार लगता है। आज भी विरक्ति के
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भले ही अपने बेटे-बहू, पोते-पोती का गुणगान ना करे, पर अपने-अपने कुत्ते का महिमागान गाते बिल्कुल भी थकते नहीं, ऐसे बहुत सारे महाशया तथा महाशयां को
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थकाहारा मरियल सा एक व्यक्ति सुनसान रास्ते से अकेला ही चला जा रहा था। बेचारा जितने कदम बढ़ा नहीं रहा था उससे कहीं ज्यादा तो
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आज अनेक दिन बाद एक भक्त के पीछे-पीछे मन्दिर से निकल आए थे भगवान। उन्हें उन दिनों की खुब याद आ रही थी जब उनके
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अपने घर के फस्र्ट फ्लोर के बाॅलकनी में खड़ी कुछ परेशान कुछ लज्जित सी तमाशबिनों को देख रही थी मैं। शहर के एक छोर में
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बुरी संगत में पड़कर पंडित गिरधर मिश्रा का एकमात्र पुत्र सुनील बिगड़ता जा रहा था। पिता की डाँट-डपट, माँ के अति दुलार तले बेअसर होती
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शर्माजी पूजा में बैठे थे। उनके घर के बाहर लॉन में बिछी कुर्सी पर बैठ मैं घन्टे भर से इंतजार कर रहा था। शर्माजी को आते
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‘‘आॅडर!आॅडर!’’ हाकिम के हथौड़ा ठोकते ही खचाखच भरी अदालत शांत हो जाती है। कटघरे में खड़े एक सौम्य-भद्र दिखने वाले सज्जन की पलकें तेजी से
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लड़कों के बायोडाटाओं पर अंतिम नजर दौड़ाने के बाद गुप्ताजी ने कहा,‘‘भई, लड़के तो एक से बढ़कर एक हैं। सभी खानदानी रईस भी हैं।’’ खुश
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अध्यक्ष महोदय माथा पकड़कर बैठे थे। पिछले दो दिनों से लोकसभा मानो अखाड़ा बना हुआ था। एक तरफ विपक्ष एफडीआइ के मुद्दे पर गलाफाड़कर चिल्लाते
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ट्रेन के इन्तजार में बैठे-बैठे झपकी आ गयी थी, श्यामलालजी को। इस झपकी के इन्तजार में बगल में बैठा व्यक्ति अपना काम तमाम कर चलता
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एक नवजात का भाग्य लिखने विधाता मर्त्यलोक में पधारे हुए थे। उस नवजात के राजनीतिज्ञ पिता को देख वे आश्चर्यचकित हुए। उन्हें भलीभांति याद था कि
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