मैंने युद्ध देखा है

By on October 25, 2014, in Best Picks, Poem

मैंने युद्ध देखा है
कत्लेआम
मैंने आसमान से छिटकते बमों की
विभीषिका देखी है

मैंने धू-धू कर जलती आग में
घर-बार-बस्तियों को राख होते देखा है
मेरे अब्बू-अम्मी और छोटे-छोटे
भार्इ बहनों की, कोयले की चाक की तरह
जल कर सिकुड़ी हुर्इ लाश देखी है

मैंने मौत देखी है
बन्दूक की नाल पर काँपते मनुष्य की कतार
मैंने मिसाइल का अग्निगोला देखा है
मैंने ध्वंस देखा है, भयावह विनाश
मैंने हिंसा को नंगा नाचते देखा है

मैंने खून से सनी मिट्टी में हजारों
सैनिकों की जूतों की छाप देखी है
हाड़-मास के स्तूप पर खड़े
कैमरा मैन को फोटो खींचते देखा है

मैनें टीवी पर प्रेसिडेंट को देखा है
जंजीरों में जकड़ा, युद्धबन्दी
फाँसी पर झूलते हुए भी देखा है

मैंनें सूट-टार्इ पहने उनके प्रेसिडेंट को भी देखा है
खाला ने मुझसे बोला, ”वह काफिर है!
अनगिनत इंसानों का कातिल
मैंने यकीन नहीं किया
मैं उसकी भाषा समझ नहीं पाता
फिर भी लगता है, वह कितना सुन्दर बोलता है
कितना सुन्दर हँसता है
धत! वह कातिल नहीं हो सकता
खाला ने शायद मुझसे झूठमूठ ही कह दिया
पर मैं सोचता हूँ , उसे देख कर
खाला के चेहरे पर इतनी घृणा क्यों थी

मैं बहुत छोटा हूँ
शायद इसीलिए आज समझ नहीं पाता हूँ

बिभास सरकार